यह एक लम्बा लेख है, कृपया गरमा गरम चाय बनाये और पढ़ना चालू करें| :)
आपको चाहे अच्छा लगे या बुरा, यह बात तो तय है: जन जीवन के सबसे कटु सत्यों में से एक जो सबसे सनातन और सबसे कठोर है वो है अलगाव का सत्य; फिर वो अलगाव चाहे मृत्यु से हो या परिस्तिथि वश।
अटल जी का एक कथन याद आता है इधर - 'जो कल थे वे आज नहीं हैं, जो आज हैं वे कल नहीं होंगे। होने न होने का क्रम यूँ ही चलता रहेगा, हम हैं हम रहेंगे ये भ्रम भी सदा पलता रहेगा।'
मनुष्य जन ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का बड़ा ही कारगर उपाय खोज रखा है: भाषा। पर यकीन मानिये, मैंने लगभग हर भाषा में यह शॊध कर के देखा है, दुनिया की किसी भी भषा में अलविदा कहने के लिए शब्द जरुर है; उन भाषाओँ में भी जो अभी तक पूर्ण रूप से विक्सित नहीं हुई हैं!
अक्सर यही सोचता हूँ मैं, ऐसा क्या चलता है हमारे दिमाग में की जाते समय अलविदा कहना ना ही सिर्फ सदाचार बल्कि हमारी एक पूर्ण रूप ज़रूरत भी है।
जहा तक मेरा मानना है, यह जरुरत हमारी एक बहुत मूल जरुरत से उभरती है| वो जरुरत है - लोग हमें जानें, याद रखें। कोई अगर आपसे कहता है की "मुझे बड़ा आदमी बनना है", दरअसल वो यह कह रहा है कि "मैं चाहता हूँ मरने के बाद भी लोग मुझे याद रखे कुछ ऐसा कर के जाना चाहता हूँ'
अगर आप मेरे लेख, कविताएँ पढ़ते आये हैं तो आपको ज्ञात होगा मुझे ज़िन्दगी को एक सफ़र भाति मानना काफी पसंद है। अपने पुरे जीवन काल में, जो की एक सफर है, हम जाने अनजाने सिर्फ एक कार्य को प्रगतिमान कर रहे होते हैं - अपने अलविदा कहने को| आप के जाने के बाद आपको कौन याद रखता है, कौन भूलता है, वो इसपर निर्भर करता है कि आपका जीवन काल किस प्रकार से लोगों को अलविदा कह रहा होता है| वो लोग चाहे करीबी हो या पराये|
मैं ज्यादा तो नहीं जानता हूँ पर इतना जरूर जानता हूँ कि अलविदा कहना एक कला है; एक ऐसी कला जो हम में से कुछ महान पुरुष ही जानते हैं| कोशिश करता हूँ ये आखिरी अलविदा आप को भा जाए|
आज मेरा कॉलेज पूरा हो गया, मैं अंततः इंजीनियर बन गया| जानता तो था ये दिन आना था, कई बार कल्पना भी करी इसी की| पर सच और कल्पना कभी होनी के परे कहाँ पहुंच पाये हैं?
कुछ ऐसा ख़ास नहीं है जो आज तक किसी और कॉलेज के लड़के ने 'फील' नहीं किया; सब जानते हैं कॉलेज छोड़ना कितना दुखद होता है| पर एक जगह रुका भी तो नहीं जा सकता, क्यों? जैसा की खलिल गिब्रान ने कहा है: मैं रास्ता पकड़ता हूँ, तो घर बुलाता है, कहता है रुक जा यहाँ तेरा अतीत है और घर पे रुकता हूँ तो रास्ता बुरा मान जाता है, कहता है मैं तेरा भविष्य हूँ| मैं अपने घर और रास्ते दोनों से यह कहता हूँ न मेरा कोई अतीत है ना मेरा कोई भविष्य| अगर मैं रुकता हूँ तो मेरे रुकने में कुछ जाता सा होगा और अगर मैं जाता हूँ तो मेरे जाने में कुछ रुका रुका सा होगा| सिर्फ मौत और मुहब्बत ही बदलाव ला सकते हैं|
बहुत कुछ सीखा है मैंने अपने जीवन के इस भाग से, आपने भी सीखा होगा| क्या क्या सीखा ये तो नहीं बता सकता, कुछ ज़्यादा ही बड़ा लेख हो जायेगा पर इतना बता सकता हूँ की आने वाली कई कठिनाइयों के लिए सक्षम हो चूका हूँ| कई यादें समेटी हैं मैंने, शायद जीवन के मुश्किल मोड़ों पर रास्ता दिखाएंगी याँ शायद गुमराह भी कर दें|
अब आप आज़ाद हैं, उस दुनिया में छोड़ दिए गए हैं जो अपनी क्रूरता के लिए मशहूर हैं| पर याद रखिये, जहां क्रूरता है वहां कल्पना से भी परे की सुंदरता है| आप हर कदम पर गिरेंगे, पर यह भी याद रखिये की आपको संभल कर उठने के लिए आपके अपनों का प्यार आपको प्रेरणा देता रहेगा| आपका हर दिन एक जंग होगा, पर हर दिन के अंत में आपको नवजात सामान बेहोश नींद मिलेगी| आपको लोग कोसेंगे पर यह भी याद रखिये आपके मित्र आपकी प्रशंसा की पुल बांधना कभी बंद नहीं करेंगे| मैं कामना करता हूँ आपको जीवन के हर आँगन में सफलता के फूल खिलने की ताकत मिले, और आप महकें|
हो सके तो याद रखियेगा| :)
यह इस ब्लॉग का आखिरी पोस्ट है| इसके बाद न ये ब्लॉग गूंजेगा, ना वो 'कॉरिडोर' उन आवाजों से गूंजेगा जहां कभी मैं पानी पीने के बहाने किसी लड़की को देखता था या घूमते घूमते किसी विषय पर बहस करता था| ख़ुशी बस इस बात की है की नए ब्लॉग और नए कॉरिडोर मिलते रहेंगे|
अंत में एक कविता सुना कर आखिरी अलविदा कहना चाहूंगा| अगर आप इस कविता को सम्पूर्ण रूप से समझ पाये तो अपनी 'कॉलेज लाइफ' सफल जानिएगा| :)
कुछ छूट तो नहीं गया?
एक बिछड़ते मित्र के साथ
तुम्हारा तय लगाने का ये चुल्ला बस ख़तम हो"
तो लम्बा नहीं चल पाएंगी
कुछ कुछ तो ऐसे दबीं पड़ी थीं
याद भी नहीं आता कभी कमाई भी थीं"
"वो जो तुम्हारा 'एम्बिशन' 'सूट' वाला है
उसे ढंग से जाना
क्या पता कब पहनना पद जाए"
"गाँव वाले सूट नहीं पहनते
भाई मेरे :) "
जब तुम्हे ईगो वाला जुखाम हुआ था
तब दीया था, तुमने वो साफ़ ही नहीं करवाया"
बहुत बार ले ले के, पतला कर दिया है
उसमे अब दुबारा प्राइवेसी की रुई डालेगी"
"ये हमारी मेहेफिलों वाली चादर का क्या?
इसे तो घर भी नहीं ले जा सकता
सिगरेट के छेद हैं
माँ झट पहचान जाएँगी क्या बीती थी इस्पे"
"ले जाना बे, कह देना
आलस वाली 'प्रेस' से हो गए हैं छेद
और गिर गई थी 'रोज़मर्रा' वाली दाल"
"मेरी वो सेमेस्टर वाली पेन भी कहीं खो गई है
मिल जाए तो रख लेना संभाल के"
"ईतना टाइम नहीं है,
मुझे अपना भी तो देखना है"
जो मुझे सबसे ज्यादा पसंद थी?
फट गई थी एक रोज़,
दरजी बता रहा था रफू हो सकती है
अभी भी"
उसका क्या?"
खराब ही कर डाला,
अब तो सबकी सुन्नी पड़ती है"
वो बटोर लीं सब जगह से?"
"कहाँ यार, किसको कौन सी दे आया
याद भी नहीं
लोग हैं साले की लौटाते भी नहीं"
यहीं छोड़ जाता हूँ, सफाई वाला
ले जायेगा एक रोज़ उठा के
मसाला था, बड़ी दूर से लाया था
वो भी ख़तम हो गया है"
'सभ्यता' वाला कुरता तुम लाये थे,
वही पहन के 'पारो' के घर के पास से निकलना
'गर्लफ्रेंड' तो न बना पाए
हो सकता है शादी का 'ऑफ़र' ही पा जाओ"
"साले रुको, तुम्हारी लौंडियाबाजी वाली
'फेवरेट' 'केप्री' पर
पान की पीक मार जायेंगे"
भागो, तुम्हारी 'भविष्य' वाली गाड़ी
आने का टाइम हो गया है"
वो 'फॉर्मेलिटी' वाला जो 'गिफ्ट' थमाया था
उसे उठा पटक के देखना जरुर
इसी बहाने याद भी कर लोगे"
"वो तो कबका गंगा विसर्जित कर आए|
सारा सामान बाँध लिया न
कुछ भूले तो नहीं?"
"हाँ यार,
बाँध ही लिया सब क़ुछ।
चलो अलिदा!"
वो बेफिक्र-जवानी वाली जो टी-शर्ट थी
उसे तो भूल ही आया
'कमीज़' में कटेगी
काटेगी शरीर, वो कमीज़।
Adios! ;)
3 comments:
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